2. भील -राजस्थान की सबसे प्राचीन व दूसरी प्रमुख जनजाति है ,यह जनजाति उदयपुर में (सर्वाधिक) सिरोही जिले में निवास करती है |
भील-शब्द की उत्पत्ति से भिल्लू (ग्रीकभाषा )मानी जाती है ,जिसका तात्पर्य धनुष है |
भील शब्द का शाब्दिक अर्थ -तीर चलाने वाला होता है ,भील स्वयं को महादेव शिव के संतान मानते हैं |
💨कर्नल जेम्स टॉड ने भीलो को वनपुत्र कहा | संस्कृत साहित्य में भीलो को निषाद या पुलिंद जाति से संबंधित बताया |
-प्रसिद्ध लेखक रोन ने अपनी पुस्तक वाइल्ड ट्राइब आफ इंडिया (Wild tribes of india )में भीलों का मूल स्थान मारवाड़ को माना जाता है |
-डॉक्टर डी एन मजूमदार ने अपनी पुस्तक रेस एंड कल्चर ऑफ इंडिया (Race and culture of india ) में भील जनजाति संबंधित नीग्रिटो प्रजाति से माना |
-जी .एस .थॉमसन ने भीली व्याकरण नामक ग्रंथ लिखा |
भीलों का त्याग ,स्वामी भक्ति अनोखी मिसाल माना जाता है, इसीलिए ही मेवाड़ के राज्य चिहन चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है, इसमें एक ओर राजपूत राजा दूसरी ओर भील राजा " पूंजा "
का चित्र अंकित है |
प्राचीन काल में मेवाड़ महाराणा का राज्य अभिषेक भी भील राजा स्वयं अपने खून से करता था
वस्त्रों के आधार पर भीलो को दो भागों में विभक्त किया गया है :-
1.लंगोटिया भील 2.पोतिददा भील
1लंगोटिया भील -केवल कमर पर लंगोटी पहनते हैं " खोयतु "
कहते हैं |
स्त्रियां घाघरा पहनती है ,जो घुटने तक होता है " कछाबू " कहते हैं |
(ख) पोतिददा भील- यह बिल धोती बंडी और पगड़ी द्वारा शरीर को ढकते है |
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