चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास | Chittorgarh Fort History in Hindi

चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास | Chittorgarh Fort History in Hindi

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण वीर विनोद पुस्तक के रचयिता श्यामल दास (निवासी भीलवाड़ा) के अनुसार मौर्य वंश के राजा ब्र्हद्र्थ के पुत्र मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने गंभीरी व बेङच नदी के संगम पर स्थित मेसा का पठार (616 मीटर की ऊंचाई )पर करवाया | 
 इस दुर्ग की लंबाई लगभग 8 किलोमीटर ,चौड़ाई 2 किलोमीटर है| जबकि भीतरी वृत्त 5 किलोमीटर लंबा और 0.91 किलोमीटर चौड़ा है |
-प्राचीर समेत दुर्ग 279 हैक्टेयर में फैला है | किले का संपूर्ण व्यास 16 किलोमीटर का है  |
-चित्तौड़गढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का सबसे विशाल दुर्ग है |
-अपनी विशालता के कारण चित्तौड़गढ़ दुर्ग  महा दुर्ग के नाम से जाना जाता है |

ध्यान रहे  💬
यह कुमारपाल प्रबंध के ग्रंथ अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चित्रांग मौर्य ने करवाया ,तो मुंहणौत नैणसी री ख्यात अनुसार इस किले का निर्माण चित्रंग मौर्य ने करवाया |

वीरता व क्रीड़ा स्थली एवं बलिदान का पावन चित्तौड़गढ़ का किला राजस्थान के गौरव के नाम से जाना जाता है |
 चित्तौड़गढ़ का किला- राजस्थान के गौरव ,सभी किलो का सिरमौर माना जाता है |

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चित्तौड़गढ़ किले के बारे में लोक में उक्त प्रचलित कहावत है -गढ़  तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया 

🟈चित्तौड़गढ़  दुर्ग गिरी की श्रेणी में आता है | 

चित्तौड़गढ़  दुर्ग से सम्बधित दोहा-💬
जिण अजोड़ राखी जुड़या मेवाड़ा सु मरोड़ |
 किलां मोड़ बिलमा तणु चित तोडण चित्तौड़ ||


यह दुर्ग दिल्ली से मालवाऔर गुजरात जाने वाले मार्ग पर अवस्थित होने के कारण इसे मालवा का प्रवेश द्वार व राजस्थान का दक्षिणी प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है  |
इसके निर्माता चित्रांग मौर्य ने अपने नाम पर इनका नाम चित्रकूट /चित्रकोट दुर्ग रखा ,उसी का अपभ्रंश चित्तौड़ है |


 यह भी जाने 💬

चित्तौड़गढ़  का किला राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट( आवासीय किला )है  |
चित्तौड़गढ़  दुर्ग का आकार व्हेल मछली के समान है |
चित्तौड़गढ़  दुर्ग  राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है ,जिसमें खेती की जाती है |
इस दुर्ग का पहला आक्रमण अफगानिस्तान के सूबेदार मामू ने किया था |



मेवाड़ में गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ( मूल नाम-काल भोज ) ने मौर्य वंश के अंतिम राजा मान मोरी को पराजित कर आठवीं (8)शताब्दी के लगभग 734 ईसवी सन में चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया  |
 तत्पश्चात इस दुर्ग परमार राजा मुंज ने गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह के कब्जे में रहा |
12 वीं शताब्दी में चित्तौड़ पर गुहिलो का पुनः  अधिकार हो गया |

यद्यपि इस किले का अधिकांशत: मेवाड़ के गुहिल वंश का अधिपत्य रहा तथा विभिन्न कालों में यह मौर्य ,प्रतिहार परमार,सोलंकी, खिलजी और मुगल शासकों के अधीन रहा है |

ध्यान रहे  💬
चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकांश निर्माण कुंभा ने करवाया| अत: कुंभा इस दुर्ग का आधुनिक निर्माता कहलाता है |कुंभा के समय यह दुर्ग विचित्रकूट के नाम से जाना जाता है |

चित्तौड़गढ़ किले के प्रवेश द्वार Chittorgarh Fort Entrance


चित्तौड़गढ़ किले में 7 प्रमुख प्रवेश द्वार है |

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश करने हेतु प्रथम दरवाजा पाडन पोल है ,जिनके पार्श्व  में प्रतापगढ़ के रावत बाघ सिंह का स्मारक बना हुआ है ,जो चित्तौड़गढ़ के दूसरे साके 8 मार्च 1535 ई.के समय बहादुरसाह की सेना से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |
इस प्रवेश द्वार को  पाटवनपोल  अर्थात् मुख्य या बड़ा दरवाजा भी कहा जाता है |

दूसरा पोल भैरव पोल आता है ,जहां भेरू जी की मूर्ति स्थापित है  |

तीसरा पोल हनुमान पोल आता है ,जहाँ हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है |

भैरव पोल व हनुमान पोल के मध्य जयमल राठौड़ (ताऊ)तथा कला राठौड़ (भतीजा)बनी हुई है,जो 1567 (ईस्वी) में तीसरे साके के समय अकबर की सेना से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |


 चौथा दरवाजा -गणेश पोल 
पांचवा दरवाजा -जोड़ला पोल
 छठा दरवाजा -लक्ष्मणपोल 
सातवां या अंतिम दरवाजा- रामपोल आता है 
अंतिम दरवाजे रामपोल के सामने पत्ता सिसोदिया का स्मारक ,है जिसने चित्तौड़गढ़ के तीसरे साके में प्राण उत्सर्ग किया था |

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रमुख महल Chittorgarh Durg Mein Pramukh Mahal

1.विजय स्तंभ victory Tower (column)

विजय स्तंभ महाराणा कुंभा ने मांडू (मालवा )के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी सारंगपुर युद्ध (1437 ईस्वी )में विजय के उपलक्ष में 1440 ईस्वी में निर्माण शुरू करवाया,जो विक्रम संवत 1505 (1448 ई.)में पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ, यह विजय स्तंभ कुंभा की कीर्ति का बखान करता है अतः इसे कीर्तिस्तंभ ही कहते हैं

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कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में ही है |

इस विजय स्तंभ में विष्णु के  सभी अवतारों के अत्यंत संजीव और कलात्मक देव प्रतिमा लिखी गई है, जिसके कारण इसे " हिंदू मूर्तिकला का अनमोल खजाना ,भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश (डॉक्टर गोट्ज़ ने कहा ) हिंदू मूर्ति कला का अजायबघर " के नाम से जाना जाता है |

 इस कीर्ति स्तंभ के मुख्य द्वार पर विष्णु भगवान की मूर्ति लगी हुई है जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यह विष्णु को समर्पित है अतः इसे विष्णुध्वजगढ़ (उपेंद्र नाथ ने कहा)
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 विजय स्तंभ को विक्ट्री टावर Victory Tower भी कहा जाता है|


विजय स्तंभ का आधार (चौड़ाई ) 30 फीट तथा ऊंचाई 120 फीट है, यह नौ मंजिल इमारत बनी हुई है ,जो नवनिधियां का प्रतीक है, विजय स्तंभ की तीसरी  मंजिल पर नौ बार अरबी भाषा ' अल्लहा' में अंकित है | 

विजय स्तंभ में कुल 157 सीढ़ियां स्थित है|

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विजय स्तंभ की आठवीं मंजिल पर कोई प्रतिमा नहीं है तथा नवी मंजिल बिजली गिरने से नष्ट हो गई थी ,जिसे 1911 में महाराजा स्वरूप सिंह ने पुनः बनाया था |
विजय स्तंभ की का प्रमुख शिल्पी जैता  था तथा उनके पुत्रों नापा, पूंजा,पोमा आदि ने इस कार्य का सहयोग दिया उस जमाने में इनको बनाने में कुल  90 लाख रूपए खर्च हुए थे 

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 कर्नल जेम्स टॉड ने विजय स्तंभ को देख कर इनके बारे में कहा है कि ,दिल्ली की कुतुब मीनार भले ही ऊंची  हो लेकिन विजय स्तंभ की कारीगरी सबसे बढ़कर है  |

फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना ' रोम के टार्जन  ' से की यह राजस्थान की पहली इमारत है, जिस पर 15 अगस्त 1949 को ₹1 का डाक टिकट जारी हुआ था |

 विजय स्तंभ राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिन्ह है |