राजस्थान के प्रतीक चिन्ह | Rajasthan ke prtik chinh

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह | Rajasthan ke prtik chinh

1.राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी :- खेजड़ी वृक्ष पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है ,जो  नागौर जिले में सर्वाधिक पाया जाता है  ,इनके अधिक उपयोग होने के कारण राजस्थान का कल्पवृक्ष या राजस्थान का गौरव  या राजस्थान का कल्पतरु या थार का कल्पवृक्ष आदि उपनाम से जाना जाता है |



खेजड़ी के उपनाम | Khejadi के upnaam 

 खेजड़ी को राजस्थान में विभिन्न प्रचलित  उपयोग के आधार पर अलग-अलग नामों दिये गये ,जो राजस्थानी संस्कृति , अपनी खूबसूरती के कारण राजस्थान का गौरव और अकाल और विपरीत परिस्थितियों में मानव जनकल्याण की रक्षा के कारण थार का कल्पतरु / राजस्थान का कल्पवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ ,जिन्होंने विभिन्न अकालों में मानव जीवन की भूख मिटाई |

राजस्थान का कल्पवृक्ष या राजस्थान का गौरव  या राजस्थान का कल्पतरु या थार का कल्पवृक्ष आदि उपनाम से जाना जाता है |

राजस्थान सरकार द्वारा 31 अक्टूबर 1983 ई. को राज्य वृक्ष घोषित किया गया |

 खेजड़ी  के स्थानीय  नाम | Khejri local names | Khejadi ke sthaniya naam

 खेजड़ी को स्थानीय भाषा में जांटी

राजस्थानी भाषा में सिमलों, 

ग्रंथों में शमी

वैज्ञानिक भाषा में प्रोसोपिस   सिनरेरिया

सिंधी भाषा में छोकङो   

 कन्नड़ भाषा में बन्नी      

तथा तमिल भाषा में पेयमेय कहते हैं |

खेजड़ी वृक्ष की हरी पत्तियों को लूम / लुंक 

 खेजड़ी  के फल सूखने के बाद खोखा ,

 खेजड़ी की फली को सांगरी कहते हैं |

खेजड़ी वृक्ष की विजयदशमी  या दशहरे पर पूजा की जाती है |


हाल ही में खेजड़ी वृक्ष सलेसट्रना नामक कीड़े और ग्राइकोट्रमा  नामक कवक का शिकार हो रहा है |

 खेजड़ी वृक्ष रेगिस्तान के प्रसार को रोकने के लिए उपयोगी माना जाता है  |

खेजड़ली दिवस 12 सितंबर ,1978 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है |

 खेजड़ी  को Wonder Tree (वंडर ट्री ) व भारतीय मरुस्थल का सुनहरा वृक्ष भी कहा जाता है |

खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी व झुंझार बाबा के मंदिर बने होते हैं |

 खेजड़ी  को बंगाली भाषा में शाईगाछ कहते हैं |

खेजड़ी   के पुष्प  को मींझर कहते है |

वैज्ञानिकों ने खेजड़ी के वृक्ष की आयु 5000 वर्ष बतायी है |

वहीं राजस्थान में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी की उम्र 1000 वर्ष पुरानी मांगलियावास गांव अजमेर में स्थित है |

महत्वपूर्ण बिंदु :-

मोटो / माटो -बीकानेर के शासकों द्वारा प्रतीक चिन्ह के रूप  में खेजड़ी के वृक्ष  को अंकित करवाया |

 1899 ई.या विक्रम संवत 1956 में पड़े छप्पनियाँ अकाल में   खेजड़ी का वृक्ष लोगों के जीवन का सहारा बना |

वन्यजीवों की रक्षा के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान 1604 ई.खेजड़ी के जोधपुर के रामसड़ी  गांव में  करमा व गौरा के द्वारा दिया गया,वहीं दूसरा बलिदान 1700 ई. में नागौर के मेड़ता परगना के पोलावास गांव में बूंचोजी द्वारा दिया गया |

2.राज्य पुष्प-रोहिड़ा :- राजस्थान का राज्य वृक्ष  रोहिड़ा (rohida ) को राजस्थान सरकार द्वारा 31 अक्टूबर 1983 ई.को राज्य पुष्प के रूप में घोषित किया गया |

रोहिड़ा के फुल को  मरुस्थल  का सागवान या राजस्थान का सागवान या मारवाड़ टीक या राजस्थान की मरु शोभा कहते है |

रोहिड़ा का वैज्ञानिक नाम  ' टिकोमेला  एंडूलेटा ' है |

रोहिडा पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है ,जो चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) में खिलता है |
रोहिड़ा के फूल हिरमिच रंग या कलर का होता है ,जिसके अंदर चार रंगों का मिश्रण होता है 
हिरमिच रंग (पीला + केसरिया + लाल + नारंगी ) रंग होता है |

रोहिड़ा को जरविल नामक रेगिस्तानी चूहा नुकसान पहुंचा रहा है |

3.राजस्थान का राज्य पशु( वन्यजीव श्रेणी )-चिंकारा 

चिंकारा वन्यजीव की श्रेणी में राजस्थान सरकार द्वारा 12 दिसंबर ,1983 को 'राज्य पशु 'घोषित किया गया |
चिंकारा को छोटा हिरण (एंटीलोप ) कहते है |
चिंकारा का वैज्ञानिक नाम  गजेला-गजेला कहते है |
चिंकारा सामान्यत जोधपुर में पाया जाता है |
चिंकारों के लिए नाहरगढ़ अभयारण्य  जयपुर भी प्रसिद्ध  है,तो वहीँ चिंकारा हल्के भूरे अखरोटी रंग का सुंदर जानवर होता है,जिसके सिंग आजीवन बने रहते है,जबकि हिरण हर वर्ष अपने सिंग गिरा देता है,और उनके नये सिंग उग आते है |

महत्वपूर्ण बिंदु :-
चिंकारा श्री गंगानगर जिले  का शुभंकर है,तो वहीं चिंकारा नाम से राज्य में एक तत् वाधयंत्र भी है |


4.राजस्थान का राज्य पशु( पशुधन श्रेणी ):-ऊंट

राजस्थान के पशुधन की श्रेणी में राज्य पशु का दर्जा देने की घोषणा 30 जून,2014 को जारी की गई,लेकिन इनकी अधिसुचना 19 सितम्बर, 2014  को जारी की गई |
 ऊंट का वैज्ञानिक नाम कैमेलस ड्रेमेटेरियस है,जो रेगिस्थान का जहाज के नाम से प्रसिद्ध है |
भारत में सर्वाधिक ऊंट राजस्थान में पाये जाते है |
ऊंट की कूबड़ में वसा पायी जाती है,जिसके कारण यह लम्बे समय तक बिना पानी के रह सकता है |
ऊंट वध रोक अधिनियम दिसम्बर 2014 में बनाया गया |
सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में अक्टूबर ,2014 में ऊँटनी के दूध को मानव जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया,तो वही ऊंटनी का दूध मधुमेह (डायबिटीज ) की रामबाण औषधि के साथ-साथ लीवर (यकृत) व प्लीहा रोग में भी उपयोगी होता है |
ऊँटनी के दूध  में कैल्यिसम (Ca ) मुक्त अवस्था में पाया जाता है,जिस कारण इसके दूध का दही नहीं जमता है |

5.राज्य पक्षी-गोड़ावन 

राजस्थान सरकार द्वारा 21 मई ,1982 को 'राज्य पक्षी' घोषित किया गया |
यह देश का सबसे अधिक दुर्लभ या लुप्त प्राय: (विलुप्त होने के कगार )पर पक्षी है, जो माल मोरड़ी या सोहन चिड़िया / गुधनमेर  /  ग्रेट इंडियन बस्टर्ड /हुकना  के नाम से प्रसिद्ध है |
इनका  वैज्ञानिक नाम क्रायोटिस नाइग्रीसेप है |
गोड़ावन मरु उद्यान (जैसलमेर  ),सौरसेन (बांरा ) एवं सौंकलिया- नसीराबाद अजमेर में पाया जाता है |
गोड़ावन का भोजन तारामीरा है\
 गोड़ावन पक्षी अपने अंडो के लिए जमीन पर घोंसला बनाते है |

 गोड़ावन  के प्रजनन हेतु जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है ,इनका प्रजनन काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है | यह अफ्रीका का मुख्यतः पक्षी, है जिसकी कुल ऊंचाई लगभग 4 फिट होती है तथा इसके ऊपरी भाग का रंग पीला व सिर के ऊपरी भाग का रंग नीला होता है |

गोड़ावन राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है, तो वही यह शुतुरमुर्ग की तरह दिखाई देता है ,जिसे 2011 की (IUCN)आईयूसीएन की रेड डाटा लिस्ट में Critically Endangered  (संकटग्रस्त प्रजाति  )माना गया है |
गोड़ावन के संरक्षण हेतु राजस्थान सरकार द्वारा 5 जून ,2013 को विश्व पर्यावरण  दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय मरू उद्यान (जैसलमेर में ) प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारंभ किया गया ,तो वही यह प्रोजेक्ट प्रारम्भ करने वाला राजस्थान भारत का प्रथम राज्य है |


महत्वपूर्ण बिंदु :-
1980 ई. में जयपुर में गोडावण पर प्रथम  अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था |

6.राज्य का शास्त्रीय नृत्य - कत्थक  
कत्थक उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है , जिसका भारत में प्रथम घराना लखनऊ है तो वहीं इसका आदिम ( पुराना )व हिंदू घराना जयपुर को माना जाता है |
इस नृत्य के प्रवर्तक भानु जी महाराज थे |

7.राज्य गीत -केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश ..........
इस गीत को उदयपुर निवासी मांगी बाई ने पहली बार गाया |
अल्लाह जिल्लाह बाई ने मांड राग में सर्वाधिक बार गया |
राज्य गीत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय बीकानेर जिले की अल्लाह जिल्लाह  बाई को है |
 अल्लाह जिलाई बाई को राजस्थान की मरू कोकिला के नाम से जाना जाता है तो वहीं राजस्थान की प्रमुख मांड गायिका ओं के नाम :-
  • स्वर्गीय हाजनअल्लाह जिल्लाह बाई (बीकानेर)
  • स्वर्गीय गवरी देवी (बीकानेर )
  • मांगीबाई (उदयपुर )
  • गवरी देवी (पाली )

8.राजस्थान का नृत्य -घूमर 

घूमर को राजस्थान की आत्मा के उपनाम से जाना जाता है, इनकी उत्पत्ति मूलतः मध्य एशिया में भरंग/ मृंग से हुई |
वहीं घूमर नृत्य मांगलिक अवसरों ,तीज,त्यौहारों आदि  के अवसरपर आयोजित किए जाते हैं ,इनके  तीन रूप है :-
  •  झुमरिया-बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य
  •  लूर -गरासिया जनजाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य
  •  घूमर -इसमें सभी स्त्रियां भाग लेती है |

9.राज्य खेल -बास्केटबॉल 

 बास्केटबॉल  को राजस्थान सरकार द्वारा 1948ई. में राज्य खेल घोषित किया गया |
बास्केटबॉल में कुल खिलाड़ियों की संख्या 5 होती है |
राज्य में बास्केटबॉल अकादमी जैसलमेर में तथा महिला बास्केटबॉल अकादमी जयपुर में स्थित है |
10 .राज्य की राजभाषा -हिंदी है |
11. राज्य का लोक वाद्य- अलगोजा है |
12.राज्य की राजधानी -जयपुर है  |
13.राज्य कवि -सूर्यमल मिश्रण है |
14.राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है |
15.राज्य का नृत्य- घूमर है |
16.राज्य गीत -केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे है |

महत्वपूर्ण बिंदु :-
1965 में भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक विजय स्तंभ तनोट (जैसलमेर में ) स्थापित किया गया |


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