राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता पाबूजी , Rajasthan lok devta Pabhu ji Maharaj 2022

राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता पाबूजी , Rajasthan lok devta Pabhu ji Maharaj 2022

 

✪✪पाबूजी -राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता ⍟⍟














पाबूजी का जन्म 1239  ई .सन विक्रम संवत (1296 )  में कोलू / कोलू मंड (जोधपुर )में राठौड़ राजवंश में हुआ इनके  
पिता का नाम धाधलजी राठौड़ 
माता का नाम -कमला दे 
पत्नी का नाम फुलम दे (अमरकोट के सोढा राजा सूरजमल की पुत्री ) था |

 पाबूजी की घोड़ी का नाम - केसर कालवी 
पाबूजी को ऊंटों के देवता, गौ रक्षक देवता ,प्लेग रक्षक देवता ,हाङ- फाड़ देवता ,लक्ष्मण जी का अवतार मेहर जाति के मुसलमान पीर आदि के नाम से जाना जाता है |

रेबारी /राईका  (उंटो का पशुपालक जाति) के आराध्य देव पाबूजी है, इस कारण बीमार होने पर भोपे पाबूजी की फड़ सबसे लोकप्रिय बाँचते  हैं  |
 आशिया मोड जी द्वारा लिखित पुस्तक पाबू प्रकाश में बाबू के जीवन परिचय का उल्लेख हुआ है |

 पाबूजी की फड़ को बाँचते  समय रावण हत्था वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ,तो पाबूजी के पवाङे गाते समय माठ वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है




 पाबूजी की कथा  :-


पाबूजी की घोड़ी :-देवल चारणी द्वारा दी गई थी ,देवल चारणी ने घोड़ी के बदले उसने यह वचन दिया था कि वह उनकी गायों की रक्षा करेंगे, लेकिन इस पर पाबूजी ने कहा कि उन्हें कैसे पता पड़ेगा ,कि तुम्हारी गायों पर संकट आया है इस पर देवल चारणी ने कहा- जब भी मेरी घोड़ी हिनहिनाए  तो समझ लेना कि मेरी गाय संकट पर आया और आप रक्षा के लिए चले आना  | पाबूजी के बहनोई जिंद राव खींची ने इस घोड़ी को देवल चारणी से मांग चुके थे, लेकिन देवल चारणी ने यह घोड़ी जिंद राव खिची को न देकर पाबूजी को दी थी इस कारण वह इस बात से क्रोधित थे ,और देवल चारणी ने बदले के अवसर की ताक में थे  |

इस कारण जब पाबूजी विवाह के लिए फेरे में बैठे ,तभी देवल चारणी की घोड़ी  भी जोर से केसर कालवी जोर हिनहिनाए |

जिसे बाबू जी समझ गए कि चारणी की गायों पर संकट आया विवाह के साढ़े तीन फेरे लेने के बाद गायों को बचाने पहुंचे ||

 बहनोई ( जायल नागौर )के शासक जिंद राव खिची से युद्ध लड़ते हुए 1276 में देचू गांव (जोधपुर ) में 24 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए, इसीलिए पाबूजी के अनुयायी, आज भी विवाह के अवसर परसाढ़े तीन फेरे   पर ही लेते हैं  |

                                                        𐫰𐫰✩✩यह भी जाने       𐫰𐫰✩✩

 मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को कहा जाता है |

 पाबूजी का प्रतीक- चिन्ह भाला लिए अश्वरोही है  |

पाबूजी के सहयोगी चांदा डैमा व  हरमल  है |

पाबू जी के उपासक के द्वारा पाबूजी की स्मृति में थाली नृत्य किया जाता है |

 पाबूजी बाई ओर झुकी हुई पाग (पगड़ी )प्रसिद्ध है ,जिस का मंदिर कोलू मंड (फलोदी, जोधपुर  )में चैत्र आमवस्या को मेला लगता है  |

मुगलकालीन पाटन मिर्जा खा का नाम बड़े पैमाने पर गौ हत्या में लिप्त  रहा ,उनके विरुद्ध बाबूजी ने युद्ध किया और गौ हत्या रुकवाई |