✰✰✰✰ राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य ✰✰
:- जबव्यक्ति प्रश्न व प्रफुल्लित होता है ,स्वत: ही उसके पैर थिरकने लगते हैं ,यह भाव भगिमा नृत्य कहलाती है |
लोक नृत्य उमंग भर कर सामूहिक रूप से किए जाते हैं ,जिनमें न तो मुद्राएं निर्धारित होती है और न ही अंगों का निश्चित परिचालन होता है ,इस प्रकार के नृत्य को देसी नृत्य /लोक नृत्य का जाता है |
✰✰ यदि नृत्य को निश्चित नियम व्याकरण के माध्यम से किया जाए, तो यह शास्त्रीय नृत्य कहलाता लाता है |
:- राजस्थान में शास्त्रीय नृत्य की कला का नाम कत्थक शैली है , पूरे भारत में कत्थक शैली का उद्गम राजस्थान से हुआ राजस्थान में लोक नृत्य के निम्न प्रकार है :-
1.क्षेत्रीय लोक नृत्य 3.जातीय लोकनृत्य
2.व्यवसाय लोक नृत्य 4.सामाजिक व धार्मिक लोक नृत्य
1. क्षेत्रीय लोक नृत्य :-राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे लोकनृत्य विकसित हुए जो उस क्षेत्र की पहचान बन गए ऐसे नृत्य को क्षेत्रीय नृत्य कहा जाता है |
1. गैर नृत्य :-गोल घेरे के नृत्य की संरचना होने के कारण यह घेर नृत्य कहलाता है | होली के दूसरे दिन से शुरू होता है ,बाड़मेर व मेवाड़ में 15 दिन तक की धूम मची रहती है |
:- इसमें ढोल , मादल ,थाली वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है |
💨गेर नृत्य में गीदड़ नृत्य बाड़मेर और मेवाड़ क्षेत्र में पुरुष खांडा लेकर गोल घेरे में नृत्य करते हैं |
-बाड़मेर ,मेवाड़ क्षेत्र में गेर नृत्य की मूल रचना एक ही प्रकार है ,किंतु नृत्य की लय, चाल और मंडल एवं नर्तकों की पोशाक में अंतर होता है |
मेवाड़ में गैर नृत्य करने वाले सफेद रंग की अंगरखी ,सफेद धोती , लाल पगड़ी पहनते है ,तो बाड़मेर में सफेद ओंगी /लंबा फ्रॉक ,कमर में चमड़े का पट्टा व तलवार रखते है |
गेर नृत्य के प्रत्युत्तर में गाए जाने वाले श्रृंगार और भक्ति रस की गीत को फाग जाता है |
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भीलवाड़ा जिले का घूमर गेर नृत्य प्रसिद्ध है, जिसे 1970 में निहाल अजमेरा ने शुरू किया है |
:- नाथद्वारा / राजसमंद में शीतला सप्तमी सप्तमी से 1 माह तक गेर नृत्य का आयोजन होता है |
✫✫तलवारों की गैर -उदयपुर में प्रसिद्ध है |
यह उदयपुर के मेनार गांव के उकार्रेश्वर चौराहे पर चेत्रबदी बीज /दूज या जमरा बीज को खेली जाती है |
नृत्य कारों के लिए चूड़ीदार पाजामा ,लंबी अंगरखी ,कमरबंधा और सापा पगड़ी पर डंके की पछेवड़ी पहनना आवश्यक होता है |
इस नृत्य का उल्लंघन करने पर नृत्यकारों के ऊपर ₹100 का जुर्माना रखा जाता है |
1.जोधपुर का डांडिया नृत्य :-डांडिया नृत्य मारवाड़ का लोकप्रिय नृत्य है ,जो गुजरात का लोक नृत्य है |
गैर ,गीदड़ और डांडिया नृत्य वृताकार घेरे में होली के अवसर पर केवल पुरुषों द्वारा हाथ में डंडे लेकर किया जाता है |
2.जोधपुर का घुड़ला नृत्य :- घुड़ला नृत्य जोधपुर क्षेत्र का लोक नृत्य है ,जो विशुद्ध रूप से स्त्री ही करती है |
घुड़ला नृत्य के पीछे जनश्रुति है ,कि जोधपुर राज्य के पीपाड़ नामक स्थान पर मारवाड़ की 140 कन्या है ( तीजणियां -गणगौर की पूजा करने वाली लड़कियां व महिलाएं )गणगौर की पूजा कर रही थी, जिन्हें अजमेर के हकीम मलूक खा के सेनापति घुड्ले खां बंधी बना कर ले गया, तो तत्कालिक जोधपुर के शासक सातल देव ने उन कन्या को चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिनघुड्ले खां को मारकर उसके सिर को काट कर व् छिद्रित कर मुक्त कराया ,और सभी ने प्रसन्न होकर उस कटे सिर को थाली में रखकर पूरे गांव में घर-घर में घुमाया ,जिसे गांव वालों को पता चले कि महिला का अपहरण करने वालों का यह हाल होता है ,तभी से जोधपुर में प्रतिवर्ष गणगौर के समय चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी को घुड़ला नृत्य किया जाता है |
:-गणगोर की पूजा " गण "शिव और पार्वती की पूजा कुमारी लड़कियां अच्छे पति के लिए अविवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है |
गणगौर की पूजा विधवा महिला नहीं करती है
घुड़ला नृत्य में स्त्रियों के सिर पर रखे मटके में छोटे-छोटे छेद होते हैं ,इसमें एक दीपक जलता है को सिर पर रखकर नृत्य करती है इसी मटके को घुडला जाता है ,
नृत्य के समय घुडला के गीत घुडला " घूमेगा रे घूमेगा.... घुडला गाए जाते हैं इस घुड्ला प्रतीक मटकी की मटके को चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है
इस नृत्य को सर्वप्रथम मारवाड़ में घुड्ले खां की बेटी गिंदोली ने गणगौर उत्सव के रूप में शुरू किया ,यह नृत्य दिन में नहीं अपितु रात्रि में किया जाता है |
घुड़ला नृत्य को रूपा नयन संस्थान बोरुंदा जोधपुर की अध्यक्ष स्व कमल कोठारी ने सुरक्षा देकर राष्ट्रीय मंच प्रदान किया |
3.जोधपुर का झांझी नृत्य :-इस लोक नृत्य में छिद्रयुक्त छोटे-छोटे मटके घुड़ला नृत्य के मटके से छोटे में दीए रखे जाते हैं ,फिर मटके को अपने सिर पर रखकर सामूहिक नृत्य करती है |
4. (मांडल) भीलवाड़ा का सींग वाले शेरों का नृत्य /नाहर नृत्य :- यह नृत्य भीलवाड़ा के जिले के मांडल गांव में होली के 13 दिन बाद रंग तेरस को किया जाता है , इस नृत्य में गांव को दो तीन व्यक्ति पूरे शरीर पर रुई लपेटकर सिंग लगाकर शेर बनते हैं ,और ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं, इस कारण से नाहर नृत्य /सींग वाले शेरों का नृत्य कहा जाता है ,
इस नृत्य का शाहजहाँ के शासनकाल में हुआ |
5 (ब्यावर अजमेर )का मयूर / भैरव नृत्य :-मयूर जा भैरव नृत्य ब्यावर में बादशाह के मेले के दौरान बीरबल का पात्र निभाने वाला भक्ति बादशाह की सवारी के आगे करता हुआ चलता है |
बादशाह की सवारी निकलने से पूर्व ब्यावर के व्यास परिवार का व्यक्ति जो बीरबल ( बांना )का रूप धारण करेगा, वह भैरव के मंदिर में जाकर भैरव की उपासना में नृत्य करता है इसे भैरव नृत्य कहते हैं |
-इस नृत्य से प्रसन्न होकर भैरव इतनी शक्ति देते, कि बीरबल बादशाह की सवारी के आगे नृत्य करते भी दो-तीन (दिन 2 -3)दिन तक नहीं थकता ,बादशाह की सवारी के आगे बीरबल जो नृत्य करता है , वह मयूर नृत्य कहलाता है |
-बादशाह की सवारी में बादशाह का रूप अकबर के नौ रत्नों में एक टोडरमल का होता है |
6.बांसवाड़ा का पेजण नृत्य :- पेजण नृत्य बागड़ (डूंगरपुर -बांसवाड़ा )क्षेत्र का प्रसिद्ध लोक नृत्य है ,जो दीपावली के अवसर पर पुरुषों द्वारा नारी का रूप धारण कर किया जाता है|
7.बांसवाड़ा का पालीनोच नृत्य :-पालीनोच लोक नृत्य बांसवाड़ा जिले में केवल विवाह के अवसर पर किया जाता है |
8.झालावाड़ का बिंदोरी नृत्य-_बिंदोरी नृत्य झालावाड़ क्षेत्र का प्रमुख लोक नृत्य है, जो होली व विशेष रूप से विवाह उत्सव पर किया जाता है |
9.झालावाड़ का ढोला- मारू नृत्य :- विशेष रूप से झालावाड़ क्षेत्र में किया जाने वाला ढोला मारु का नृत्य एक नृत्य नाट्य है , जो भवाईयो द्वारा किया जाता है |
-ढोला-मारू भवाइयों का प्राचीन खेल है ,जिसमें दादरा ,कहवरे,ढपताल का विशेष प्रयोग करता है |
10. (नाथद्वारा )राजसमंद का डांग नृत्य :- नाथद्वारा राजसमंद का प्रसिद्ध लोक नृत्य है, जो भगवान श्री नाथ की आराधना में होली के अवसर पर किया जाता है, जिसमें नर्तक देवर- भाभी के रूप में एक दूसरे पर रंगों का प्रहार करते भी खेल प्रारंभ करते है, देवर भाभी पर पिचकारी द्वारा रंग की मिठी मार करता है |
जबकि भाभी अपने हाथ में रखा कोड़ा प्रहार करती है ,इसके पश्चात दोनों मिलकर नृत्य करती है यह नृत्य डांग कहलाता है |
डांगी नृत्य एकमात्र युगल नृत्य है |
11.मेवात अलवर का खारी नृत्य :- खारी नृत्य मेवात अलवर का क्षेत्रीय है |
मेवात में दुल्हन की विदाई के अवसर पर उसकी चूड़ियों को बजाते हुए नृत्य करती है, सहलिया अपने सिर पर रंग बिरंगी कलात्मक खारिया रखकर हाथों की चूड़ियों को बजाती हुई नृत्य करती है ,इसे खारी नृत्य कहलाता है |
खारी उस छाबड़ी सदुकची जाता है ,जिसमें वधू अपने कपड़े रखकर ससुराल जाती है |
खारी शुभ व मंगल का प्रतीक माना जाता है |
12.जैसलमेर का हिंडोला नृत्य :- हिंडोला नृत्य जैसलमेर में किया जाता है ,यह युगल नृत्य है इसमें हिंडोले का अर्थ यहां झूला नहीं होकर बड़ी विशेष से है |
13.धारियाबाद (प्रतापगढ़ )का मोहिली नृत्य-घरियाबाद प्रतापगढ़ का मोहिली नृत्य कंठल प्रदेश के घरियाबाद गांव में किया जाने वाला एक क्षेत्रीय नृत्य है | यह विशुद स्त्रीयो का है जो विवाह केअवसर पर किया जाता है |
इस नृत्य में महिला गोल घेरा बनाकर धीमी गति से नृत्य करती है
14.डूंगरपुर का चौगोला नृत्य :-चौगोला नृत्य एक क्षेत्रीय युगल नृत्य है, जो डूंगरपुर जिले में होली के अवसर पर किया जाता है, इस नृत्य में स्त्री- पुरुष जलती हुई होली के चारों और गोला या घेरा बनाकर करते हैं, इस नृत्य को युगल नृत्य कहते हैं |
15.(चौहटन ) बाड़मेर का कानुडा नृत्य :-कानुडा नृत्य बाड़मेर के चौहटन गांव में कृष्ण जन्माष्टमी को महिलाओं व पुरुषों युगल जोड़ी में के द्वारा किया जाता है ,यह भी युगल नृत्य है
" व्यवसाय के लोक नृत्य "
व्यवसायिक जब भक्ति व्यक्ति किसी नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी जीविका चलाने लगता है, तो वह व्यवसाई या पेशेवर तथा उसके द्वारा किया जाने वाला नृत्य व्यवसायिक लोकनृत्य कहलाता है ,राज्य में राज्य में राज्य में राज्य में तेरहताली भवाई एवं कच्छी घोड़ी नृत्य व्यवसायिक लोकनृत्य की श्रेणी में आते हैं |
💨तेरहताली नृत्य _यह कामङ जाति की महिला का मुख्य पारंपरिक लोक नृत्य है ,जो बाबा रामदेव के मेले में सर्वाधिक किया जाता है, इसका उद्गगम पादरला, बाली पाली तहसील बाली में हुआ |
राजस्थान का एकमात्र तेरहताली नृत्य ऐसा है जो बैठकर किया जाता है, इस नृत्य में पुरुष गीत गाते हैं ,और स्त्रियां तेरह्र मंजीरे अपने सिर पर शरीर पर 9 दाएं पांव में, दो दोनों हाथों की कुहनियो 1-1 मंजीरा दोनों हाथों में बांधकर नृत्य करती ,इस नृत्य के दौरान स्त्रियां हाथ वाले मंजिरो को अन्य मंजीरो पर बजाकर नाना प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करती है, विभिन्न प्रकार की भाव भंगिमा करती है |
1, अनाज साफ करना 3.अनाज कूटना 4.अनाज पीसना
2 अनाज काटना 5.आटे से फुल्का बनाना.
6 . बाजरे की रोटी बनाना
7. घी तैयार करना
8.जमे हुए दूध से घी निकालना
9. बाजरे का आटा गुंदना
10.गेहूं के आटे के पानी मिलाना
11.चरखे पर कातना
12.सुत समेटना 13.अनाज छानना
तेरहताली नृत्य में पुरुष मंजीरे ,तानपुरे ,चोतारो वाध यंत्र के साथ संगत करते हैं |
यह नृत्य शैली शारीरिक कौशल अधिक प्रदर्शित करती है ,लेकिन मर्यादित रूप से |
मांगी बाई ,मोहिनी ,कमल दास, रामदास ,लक्ष्मण दास ,कामड़ इसके प्रमुख कलाकार है |
मांगी बाई तेरह ताली नृत्य के लिए विख्यात है ,जिनका जन्म चित्तौड़गढ़ जिले के बनिना ग्राम में विवाह पदरला गांव में भैरू दास के साथ हुआ |
1954 में जवाहर लाल नेहरू के समक्ष गाड़ियां लाहौर के सम्मेलन में तेरहताली नृत्य प्रस्तुत किया, इसके बाद अमेरिका ,पेरिस, लंदन ,इटली, स्पेन ,कनाडा आदि देशों में प्रस्तुत की गई |
1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया |
गौरम दास मांगी बाई के गुरु व जेठ |थे
भवाई नृत्य नृत्य एवं लोकनाट्य जोधपुर का लोकनाट्य है ,जो राजस्थान राज्य में गुजरात के समीप स्थित मेवाड़ क्षेत्र में किया जाता है |
भवाई नृत्य उदयपुर संभाग में सर्वाधिक प्रचलित लोक नृत्य है |
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