रणथंभौर किले का इतिहास | Ranthambore Fort in Rajasthan History in Hindi |

रणथंभौर किले का इतिहास | Ranthambore Fort in Rajasthan History in Hindi |


रणथंभौर किले का इतिहास Ranthambore Fort History in Hindi


रणथंभोर दुर्ग का वास्तविक नाम रंत :पुर है अर्थात रण की घाटी में स्थित  नगर

 इतिहासकार हीराचंद ओझा के अनुसार रणथंभोर का किला अंडाकृति वाले एक ऊँचे पहाड़ पर स्थित है | इसके चारों ओर की पहाड़ियों को किले की रक्षार्थ  किले की दीवार कहा गया है  |

 

  ध्यान दे ???

रणथंभोर दुर्ग अंडाकार ढांचे में सात पहाड़ियों के बीच स्थित है, यह  दुर्ग  गिरी दुर्ग व वन दुर्ग की श्रेणी में आता है |

 इस दुर्ग  का निर्माण आठवीं शताब्दी 8 वीं   शताब्दी के लगभग महेश्वर के चंद्रवंशी राजा रंतिदेव ने इस किले को बनवाया

 कुछ इतिहासकार के अनुसार 944 में सपादल्क्ष के चौहान राजा  रण थान देव ने बनवाया था ,और कुछ इतिहासकार के अनुसार चंदेल राजपूत राव जेता ने  आठवीं शताब्दी में इस तरह का निर्माण करवाया |

 सर्वाधिक मान्यता यह है, इसके निर्माण 8 शताब्दी के लगभग अजमेर के चौहान शासक राजा जयंत  द्वारा करवाया गया |

ध्यान रहे ???

रणथंभोर  दुर्ग में तराइन के   द्वितीया युद्ध 1192 के पश्चात पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविंद राज ने चौहान वंश की नींव रखी थी चौहान वंश का सबसे वीर पराक्रमी शासक हमीर देव चौहान था |

इस दुर्ग को देखकर अबुल फजल ने कहा कि  " और दुर्ग नंगे है, परंतु यह दुर्ग बख्तरबंद है "|

इस दुर्ग को  " दुर्गाधिराज " हमीर की आन- बान का प्रतीक आदि के नाम से जाना जाता है |

 ध्यान रहे ??

 नंयनचन्द्र सूरी कृत हमीर महाकाव्य ,जोधराज कृत हम्मीर रासो ,चंद्रशेखर कृत्य हम्मीर हठ  तथा गोडऊ व्यास कृत हम्मीरायण  जानकारी मिलती है |


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Ranthambore fort of Rajasthan
रणथंभोर दुर्ग दिल्ली, मालवा एवं मेवाड़ से निकट होने के कारण इस दुर्ग पर बार- बार आक्रमण होते रहे थे   रणथंभोर दुर्ग पर सर्वप्रथम कुतुबुद्दीन ऐबक ने आक्रमण किया 

रणथंभोर दुर्ग पर 1291-92 ई. में सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने रणथंभोर दुर्ग पर दो बार  आक्रमण किया ,परंतु उसने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देख कर यह कहते हुए कि, ऐसे 10 किलो को तो मैं मुसलमानों के मूंछ के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता हूं ,वापस चला गया |
 


रणथंभोर दुर्ग में स्थित द्वार Gate in Ranthambore Fort  in Hindi

नौलखा दरवाजा :- रणथंभोर दुर्ग का मुख्य द्वार नौलखा दरवाजा है,  जिस पर एक लेख खुदा है | इस लेख   के अनुसार दरवाजे का जीर्णोद्धार जयपुर के महाराजा जगतसिंह ने करवाया था  |

 तोरण दरवाजा :-नौलखा दरवाजा के बाद एक त्रिकोणी (तीन दरवाजों का समुह ) आता है ,जिसे चौहान शासको के काल में  ' तोरण द्वार ' मुसलमान शासक के काल में  ' अंधेरी दरवाजा ' और जयपुर के शासकों द्वारा
त्रिपोलिया दरवाजा  ' कहा जाता है |

हाथीपोल, गणेशपोल सूरजपोल इस दुर्ग के अन्य प्रमुख प्रवेश द्वार है |


 दुर्ग में स्थित दर्शनीय स्थल :-Darshniya Isthal  In RANTHAMBORE Fort in Hindi


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Rajasthan ki Pramukh Chatriya

जोगी महल :- दुर्ग के प्रवेश द्वार के बाई ओर ' जोगी महल  'स्थित है, जिसे राजा ने एक ऋषि के रहने के लिए बनवाया था ,किंतु कालांतर में यंहा साधुओ के डेरे लगने लग गए, इसलिए उनका नाम  ' जोगी महल  'पड़ गया |1961 में राजस्थान सरकार के वन विभाग ने इसका निर्माण करवाया |

आजकल यह पर्यटकों के लिए विश्रामगृह बना हुआ है |

जैतसिंह की छतरी :- राजा हम्मीर ने अपने पिता की मौत के बाद उनकी समाधि पर लाल पत्थरों से 32 विशाल खंभों वाली 50 फुट ऊंची छतरी  बनवाईहम्मीर देव  न्याय करता था ,अत : इस छतरी को  ' न्याय की छतरी ' कहते हैं ,छतरी के नीचे गर्भगृह में काले भूरे रंग के पत्थरों  से निर्मित शिवलिंग   है |

अधूरी छतरी /अधूरा स्वप्न :-  जैतसिंह की छतरी के  पास के ही लाल पत्थरों  की अधूरी छतरी  है,  जिसे मेवाड़ के राणा  सांगा  की हाडा रानी कर्मावती ने  बनवाना शुरू किया ,परंतु उसके चले जाने के कारण यह छतरी अधूरी रह गई |
 गणेश मंदिर  :- इसका  निर्माण चौहान शासको  ने करवाया था, राजस्थान में एकमात्र त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर  (श्री गणेश जी के मुख की पूजा ) यहीं पर की जाती है, यहां भाद्रपद शुक्ल पक्षगणेश चतुर्थी को एक विशाल मेला भरता है  |


ध्यान रहे  

इस दुर्ग में गणेश मंदिर के पूर्व में एक अज्ञात जल स्रोत है, जिसे गुप्त गंगा कहा जाता है |

शिव मंदिर :- गणेश मंदिर के पीछे शिव मंदिर स्थित है ,जनश्रुति के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी को हराने के बाद विजयी हम्मीर ने जब अपनी रानियों के जौहर की घटना सुनी तो, उन्होंने अपने आराध्य देव शिव को अपना सिर सिर काटकर अर्पित कर दिया |

हम्मीर कचहरी  :-चौहान  शासक हम्मीर  इस कचहरी में बैठकर प्रजा को न्याय प्रदान करते थे 
 पीर सदरूद्दीन की दरगाह :-उनका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया |

पदमला तालाब :-इसमेंहम्मीर की रानी रंग देवी के नेतृत्व में वीरांगनाओं ने 11 जुलाई 1301 में जल जौहर किया |

 सुपारी महल :- इस दुर्ग में बना सुपारी महल भावनात्मक एकता का जीता जागता उदाहरण है ,क्योंकि राजस्थान की एकमात्र रणथंभोर दुर्ग का सुपारी महल ही एक ऐसा स्थान है ,जहां एक ही स्थान पर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर है ,जो हिंदू- मुस्लिम तथा व ईसाई संस्कृति के समन्वय का अनूठा उदाहरण पेश करते हैं |

 अमीर महल :- इस दुर्ग का आकर्षण हम्मीर  का महल है  ,जो करौली के लाल पत्थरों से बना हुआ है |
 बादल महल ,जोरा-भौरा महल  (अनाज रखने के गोदाम ),लक्ष्मी नारायण मंदिर ,(भग्न रूप में ) रणत्या की डूंगरी राणीहाड. तालाब आदि दर्शनीय महल है  |



रणथंभोर दुर्ग का शाका Saka in Ranthambore Durg in Hindi

 इतिहासकार के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति  मंगोल मीर मुहम्मद शाह  सुल्तान की मराठा बेगम चिमना या कामरु से प्रेम करता था, बेगम ने सेनानायक के साथ मिलकर अलाउद्दीन को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा ,लेकिन अलाउद्दीन को इसका पता चल गया  ,मुहम्मदशाह तथा बेगम वहां से भागकर  हम्मीर की शरण में रणथम्भौर चले गए | अलाउद्दीन ने हम्मीर को पत्र लिखा, कि दिल्ली सुल्तान के मन में हम्मीर के प्रति किसी प्रकार की व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, यदि वह शरणागतो को मार दे या उन्हें सौंप दे, तो शाही सेनाए वापस दिल्ली लौट जाएगी, परंतु हमीर अपने वचन का पक्का निकला और उसने शरणागतों को मारने व  सौंपने से मना कर दिया ,इसी हठ के कारण हम्मीर ने अपना परिवार राज्य तथा सब कुछ खो दिया, इसलिए हमीर के लिए उक्ति प्रसिद्ध है :-
 " सिंह सुवन ,सत्पुरुष वचन कदली फलै इक बार "
 " तिरिया तेल , हम्मीर हठ , चढे न दूजी बार  ||"
अर्थात सिंहनी एक बार बच्चा देती है ,सत्पुरुष एक बार जो कह देते हैं अटल है |  केले में एक बार फल आता है  |स्त्री व पुरुष के एक बार तेल चढ़ता है ,इसी प्रकार इसी तरह हम्मीर देव ने एक बार जो तय कर लिया ,वह टल  नहीं सकता | तब अलाउद्दीन ने रणथंभोर पर  1300 ईसवी. में घेरा डाला | एक वर्ष तक लंबी घेराबंदी पर भी अलाउद्दीन को सफलता नहीं मिली ,तो उसने छल-कपट का सारा लिया | अलाउद्दीन ने हम्मीर के  " रणमल "  व रतिपाल " नामक सेनापतियो को बूंदी के परगने का लालच देकर अपनी ओर मिलाकर  खाद्यान्नों  में हड्डियों डलवाकर उसे अपवित्र कर दिया, इस कारण दुर्ग में खाद्यान्नों का संकट उत्पन्न हो गया, ऐसी स्थिति में भूखे मरने की जगह राजपूत सैनिकों  ने 11 जुलाई  1301  ई.में केसरिया किया |
हम्मीर की रानी रंगदेवी के नेतृत्व में राजपूत रानियों ने जौहर किया, राजस्थान का प्रथम जल जौहर व साका  था |

 ध्यान रहे???
हम्मीर देव की पुत्री देवलदे ने इस युद्ध में जल जौहर ( पदमतालाब में कूदकर  )किया था ,इसे  जल जोहर भी कहा जाता है |
 13 जुलाई 1301 ई. के दिन रणथंभोर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया अलाउद्दीन ने मंदिरों  व मूर्तियों  को तोड़ने केआदेश दिये जिस कारण अमिर खुसरो ने रणथंबोर दुर्ग के बारे में लिखा है कि " कुर्फ़ का गढ़ इस्लाम का घर हो गया है "

बाद में आमेर नरेश मानसिंह ने रणथंभोर दुर्ग को शिकारगाह के रूप में परिवर्तित कर दिया ,इसके बाद आमेर नरेश  पृथ्वीसिंह और सवाई जयसिंह ने दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया तथा सवाई माधो सिंह ने इसी के समीप अपने नाम से सवाई माधोपुर नामक नगर बसाया  |

ध्यान रहे ??
सवाई माधो सिंह ने रणथंभोर दुर्ग को पचेवर के अनूपसिंह खंगारोत के प्रयासों से  जयपुर राज्य में  मिलाया तथा इसी दुर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए जयपुर रियासत व मराठों के बीच  उनियारा(क्क्कोड़)  का युद्ध हुआ |

यह भी जाने ??
✭✭✩✰ बाबर के विरुद्ध खानवा युद्ध में लड़ते हुए घायल हो जाने पर महाराणा सांगा को रणथंभोर दुर्ग में लाया गया था |

✭✭✩✰  मेवाड़ के महाराणा सांगा की  " हाडी रानी कर्मावती ने रणथंभोर दुर्ग चित्तौड़ आक्रमण के समय संधि के तहत यह गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह को दिया, तो शेर शाह सुरी ने इस दुर्ग पर अधिकार कर अपने पुत्र आदिल खां को  दुर्गाध्यक्ष बनाया |

✭✭✩✰  मुगल काल  (अकबर के शासन काल में ) रणथंभोर दुर्ग को शाही कारागार के रूप में उपयोग करते थे ,यहीं पर अखबार ने शाही टकसाल बनवाई  |
✭✭✩✰ अकबर के पूर्व यहा के शासक बूंदी के शासक सुर्जन हाड़ा था,अकबर ने रणथंभोर दुर्ग की जागीरी आमेर के जगन्नाथ कछवाहा को दी तो, शाहजहा ने रणथंभोर दुर्ग की जागीर  अपने सेनापति विट्ठलदास गौड़ को दी |
 वीर विनोद के लेखक कविराज श्यामल दास निवासी भीलवाड़ा ने दुर्ग के दुर्भेध स्वरूप को प्रकट करते हुए लिखा है रणथंभोर के हर तरफ गहरे और पेचदार नाले व पहाड़े  है ,जो तंग रास्तों से गुजरते हैं