✅ व्यवसायिक लोक नृत्य Commercial folk dance of Rajasthan ✅
जब व्यक्ति किसी नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी जीविका कमाने लगता है ,तो वह व्यवसाय या पेशेवर नृत्य कहलाता है ,तथा उसके द्वारा किया जाने वाला नृत्य व्यवसाय / पेशेवर लोकनृत्य कहलाता है |
राजस्थान में तेरहताली ,भवाई, कच्छी घोड़ी लोक नृत्य व्यवसायिक लोक नृत्यों की श्रेणी में आते हैं तेरहताली नृत्य तेरहताली नृत्य कामड. जाति की महिला का मुख्य पारंपरिक लोक नृत्य है ,जो बाबा रामदेव के मेले में सर्वाधिक किया जाता है |
इस नृत्य का उद्गम पदरला गांव ( बाली- तहसील पाली) जिला से हुआ है |
राजस्थान का एकमात्र तेरहताली नृत्य ऐसा है, जो बैठकर किया जाता है |
इस नृत्य में पुरुष गाते हैं ,और स्त्रियां तेरह मंजीरे अपने शरीर पर 9 दाएं पांव में व दो हाथों की कुहनियो तथा 1-1 मंजीरा दोनों हाथों में बांधकर नृत्य करती है, इस नृत्य के दौरान स्त्रियां हाथ वाले मंजीरे को बजाकर नाना प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करती है, साथ ही विविध प्रकार की तेरे भाव- भगीमा प्रदर्शित करती है :-
तेरहताली नृत्य में पुरुष मंजीरे ,तानपुरे ,चौतारा वाद्य यंत्र के साथ संगत करते हैं ,इस नृत्य शैली शारीरिक कौशल अधिक प्रदर्शन करती है, लेकिन मर्यादित रूप से |
मांगी बाई ,कमल दास, परम दास, लक्ष्मण दास कामड़ , मोहिनी इसके प्रमुख कलाकार है | मांगी बाई तेरहताली नृत्य के लिए विख्यात है ,जिसका जन्म चित्तौड़गढ़ जिले के बानीना ग्राम में हुआ ,वह विवाह पादरला गांव में भेरूदास के साथ हुआ |
1954 में जवाहर लाल नेहरू के समक्ष गाड़ियां लाहौर सम्मेलन में तेरहताली नृत्य प्रस्तुत किया ,उसके बाद अमेरिका ,पेरिस, लंदन, इटली, स्पेन ,कनाडा ,हांगकांग आदि देशों में प्रस्तुत किया है |
मांगी बाई को 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया ,गौरमदास मांगी बाई के गुरु तथा जेठ थे |
:-भवाई नृत्य :-भवाई नृत्य एवं लोकनाट्य गुजरात का लोकनाट्य है ,जो राजस्थान राज्य में गुजरात के समीप स्थित मेवाड़ क्षेत्र में किया जाता है|
उदयपुर संभाग में सर्वाधिक प्रचलित भवाई नृत्य पेशेवर नृत्य में सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य है, जो अपनी चमत्कारी ( तेज लय में सिर पर 7-8 मटके रखकर नृत्य करना, जमीन पर के रुमाल को मुंह से उठाना ,गिलास पर नाचना ,थाली के किनारों नृत्य करना, कांच के टुकड़ों पर नाचना के आदि के लिए प्रसिद्ध है |
भवाई नृत्य एक नाटक के रूप में किया जाता है, जिसमें नर्तक कार भोपा,भोपण सगा जी(समधी ), सगी जी (समधन) के रूप में प्रस्तुत करती है |
भवाई नृत्य का शांता गांधी द्वारा लिखित नाटक जस्मा ओडन ( आम आदमी के संघर्ष स की कथा ) को भारत के बाहर विदेशों ( लंदन ,इंग्लैंड जर्मनी ) में भी मंचित किया जा चुका है |
भवाई लोकनाट्य एक व्यवसायिक लोक नृत्य है, जिसमें पात्र रंगमंच पर आकर अपना परिचय नहीं देते है |
भवाई नृत्य मूलत: मटका नृत्य था, किंतु भंवाई जाति के व्यक्तियों द्वारा किए जाने के कारण इनका नाम भंवाई नृत्य पड़ा|
इस भवाई नृत्य के प्रवर्तक केकड़ी अजमेर की नागोजी या बाघोजी जाट को माना जाता है, इस नृत्य को विशिष्ट ख्याति भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर के संस्थापक देवीलाल सांभर ने दया राम भील के माध्यम से दिलवाई |
राज्य के प्रमुख भवाई नृतक रूप सिंह शेखावत (जयपुर), सांगीलाल सागड़ीया (उदयपुर, 2007 में मृत्यु ),उनके जोड़ीदार पुष्कर प्रदीप, तारा शर्मा (बाड़मेर ),दयाराम भील( उदयपुर ),
नोट :-अस्मिता काला जयपुर की बाल कलाकार जिन्होंने 111 घड़े सिर पर रख कर के नृत्य करके वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाया |
:- पुष्पा व्यास( जोधपुर प्रथम भवाई महिला नर्तक है |
धयातव्य रहे :✅
भीलवाड़ा के (निहाल अजमेरा ने) अपने पौती वीणा को भवाई नृत्य में प्रवीण करते हुए 63 मंगल कलश का नृत्य करवाया , जिसे ज्ञानदीप नृत्य नाम दिया
इस नृत्य में पुरुष भी भाग लेते हैं ,जो तेज लय के साथ नाचते हुए विभिन्न रंगों की पगड़ियों को हवा में फैलाकर , अपनी अंगुलियों से कमल के फूल जैसी संरचना बना लेते हैं |
भवाई नृत्य कला की शास्त्रीय नृत्य झलक मिलती है,राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश के डाकलिया पाट भवाई जाति के लोगों द्वारा तथा गुजरात में तुरी जाति के लोगों द्वारा किया जाता है
कच्छी घोड़ी नृत्य :- कच्छी घोड़ी नृत्य शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध है |
जो सरगड़े ,कुहार, ढोली तथा भाम्बी विशेषत: बावरी नामक व्यक्ति द्वारा विवाह में किया जाता है |
यह पुरुष प्रधान एवं वीर नृत्य है , जो पैटर्न बनाने की कला बनाने के लिए प्रसिद्ध है |
पैटर्न बनाने की कला :-
चार- चार व्यक्ति आमने -सामने खड़े होते हैं ,जो आगे पीछे बढ़ने का कार्य तेज गति से कार्य करते हैं, जैसे आठ व्यक्ति एक ही पंक्ति में खड़े हो | इस पंक्ति में तीव्र गति से बनने को और बिखरने का दृश्य फूल की पंखुड़ी की खुलना का आभास दिलाता है |
इस नृत्य का उद्भव के संबंध में लोक प्रसिद्ध है :-कि एक बार कूछ पठान घोड़े लेकर चलते -चलते मराठों के एक गांव में रुके | रात में मराठे उनके घोड़े चुरा कर ले गए, अपने घोड़े को वापस पाने के लिए उन्होंने मराठों से युद्ध किया और उन्हें हराकर अपने घोड़े वापस ले लिए ,
इसलिए यह कच्छी घोड़ी नृत्य मध्यकालीन इतिहास का माहौल बनाता है ,और नृत्य वीरता के हाव -भाव प्रदर्शित करता है,
इस नृत्य में ढोलक, झांझ, डेरु ,बाकिया एक लोक वाद्य यंत्रो का प्रयोग किया जाता है |
कच्छी घोड़ी का शाब्दिक अर्थ कष्ट या लकड़ी का घोड़ा होता है|
इस नृत्य में नृतक बांस की बनी घोडिया अपने कमर से बांधकर दूल्हे का वेश बनाकर व हाथ में तलवार लेकर घोड़ी नचाते हुए नकली नृत्य करते हैं ,
अर्थात इस नृत्य में विवाह की बिदोली बनाना व युद्ध प्रदर्शन भी किया जाता है |
वर्तमान में इस नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार छवरलाल गहलोत (जोधपुर )व गोविंद पारीक( निवाई टोंक ) |
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